शिवपुरी। शक्तिशाली महिला संगठन ने सशस्त्र सेना झंडा दिवस के उपलक्ष्य में बलराम वघेल के माता पिता को शाॅल श्रीफल एवं पौधा देेकर सम्मानित किया
-शहीद हुए जवानों के परिवार वालों की मदद करने के लिए हर नागरिक को आगे आना चाहिए: रवि गोयल
युद्ध में शहीद हुए जवानों के परिवारवालों की मदद करने के लिए गहरे लाल और नीले रंग के झंडे का स्टीकर बेंचकर पैसे इकट्ठे किए जाते हैं। यह राशि झंडा दिवस कोष में इकट्ठा की जाती है। इस कोष में इकट्ठा हुए धन का युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के परिवार या घायल सैनिकों के कल्याण के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह राशि सैनिक कल्याण बोर्ड की तरफ से खर्च की जाती है। कैसे हुई शुरुआत आजादी के बाद ही 23 अगस्त 1947 को केंद्रीय कैबिनेट की रक्षा समिति ने जवानों और उनके परिवार के कल्याण के लिए झंडा दिवस मनाने की घोषणा की थी। तब से आज तक यह दिवस मनाया जा रहा है। कार्यक्रम में श्री विजय सिंह बघेल, श्रीमती गीता बघेल, शक्तिशाली महिला संगठन के रवि गोयल एवं उनकी पूरी टीम , सुपोषणसखी , आंगनवाड़ी कार्यकर्ता महेन्द्रपुरा श्रीमती उर्मिला मोंगिया , हेमन्त उपस्थित थे।शिवपुरी । 7 दिसंबर को पूरे देश में सशस्त्र सेना झंडा दिवस मनाया जाता है। इस दिन देश के लिए शहीद होने वाले जवानों का सम्मान किया जाता है। इसी तारतम्य में शक्तिशाली महिला संगठन शिवपुरी ने ग्राम चिटोरा के मजरे महेन्द्रपुरा में इकलोते पुत्र बलराम बघेल को याद किया एवम उनके पिता विजय सिंह एवं माता गीता बघेल को शाॅल श्रीफल एवं पौधा देकर उनके पुत्र को सेना मे आने के लिए नमन करते हुए माता पिता को सम्मानित किया । अधिक जानकारी देतु हुए कार्यक्रम संयोजक रवि गोयल ने बताया कि आज पूरे देश में सशस्त्र सेना दिवस है सशस्त्र सेना झंडा दिवस की शुरुआत सन् 1949 में हुई थी। झंडा दिवस को देश की रक्षा करते हुए शहीद और अपाहिज होने वाले व साथ ही पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों के त्याग को सम्मान देने के लिए और उनके प्रति आभार प्रकट करने के लिए मनाया जाता है। उन्होने कहा कि झंडा दिवस पर सशस्त्र सेनाओं के परिवार के कल्याण और उनके पुनर्वास के लिए झंडा दिवस कोष में योगदान दिया जा सकता है। यह दिन उनके प्रति एकजुटता प्रदर्शित करने का अच्छा अवसर है। इसी के मददेनजर संस्था द्वारा महेन्द्रपुरा के वलराम बघेल के परिवार मे टीम पहुंची एवं उनके पिता श्री विजय सिंह बघेल से बात की उन्होने बताया कि मेरा इकलोता बेटा 2013 में भारतीय सेना में शामिल हुआ और वह लद्दाख में भी पोस्टेड रहे । 2015 को जब वह घर से डिय्टी के लिए जा रहे थे तब एक हादसे में उनके पुत्र की मृत्यु हो गई। उन्होने बताया कि सशस्त्र सेना झंडा दिवस पर झण्डा दिवस का प्रतीक ध्वज विभिन्न् संस्थाओं और नागरिकों को वितरित कर उनसे धन.राशि का योगदान लिया जाता है। इससे जो भी राशि इकठ्ठी होती हैए उससे शहीद सैनिकों की विधवाओं अपंग सैनिकों और अन्य भूतपूर्व सैनिकों के कल्याण के लिये विभिन्न कार्य किए जाते हैं। विभिन्न् शिक्षण संस्थानों में भी प्रतीक ध्वज देकर बच्चों से भी राशि एकत्र की जाती हैए ताकि देश के बच्चों को भी सैनिकों और उनके परिवार के त्याग के बारे में पता चल सके। लोग इस दिन शहीदों के परिवार के कल्याण की खातिर धन एकजुट करते हैं। सशस्त्र झंडा दिवस की शुरुआत 1949 से हुई थी। इस दिन झंडे के स्टीकर को बेचने से इकट्ठा हुए धन को शहीद जवानों के परिवार कल्याण में लगाया जाता है। इस दिन

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