शिवपुरी। देववृक्ष कहे जाने वाले वट और पीपल को कौआ पक्षी प्रदत्त माना जाता है। अगर रात में आक्सीजन और विभिन्न बीमारियों की औषधि के लिए पीपल और वट वृक्ष चाहिए तो कौओं को बचाना होगा। इन्हें बचाने और वट- पीपल के पेड़ों को बढ़ाने के लिए ऋषि- मुनियों ने श्राद्ध के दिनों में कौओं को भोजन देने की परंपरा शुरू की थी ।
उन्होंने बताया कि श्राद्ध में पंचबलि (पांच जीवों को भोजन) देने की परंपरा है। इनमें एक काक बलि अर्थात कौआ को भोजन कराना है। इन दोनों वृक्षों के फल कौवे खाते हैं और उनके पेट में ही बीज उगने लायक होते हैं। कौवे जहां-जहां बीट करते हैं, वहां- वहां यह दोनों प्रजाति के पौधे उगते हैं। अगर इनके पौधों को उगाना है तो बिना कौवे की मदद से संभव नहीं है, इसलिए कौवे को बचाना पड़ेगा। बताया गया कि मादा कौआ भादो महीने में अंडा देती है। काक बच्चों को भी पौष्टिक और भरपूर आहार मिलना जरूरी है, इसलिए ऋषि- मुनियों ने कौवों के नवजात बच्चों के लिए हर आंगन या छत में पौष्टिक आहार की व्यवस्था की ताकि कौवों की नई जनरेशन का पालन पोषण ठीक हो। यह प्रक्रिया श्राद्ध के रूप में प्रकृति रक्षण के लिए भी आवश्यक है इसलिए जब भी हम बरगद और पीपल के पेड़ों को देखते है, पूर्वज याद आते हैं।

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