शिवपुरी। दशहरा पर्व पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए साढ़े 8 वर्ष की उम्र में जैन दीक्षा लेने वाले बाल मुनि के नाम से विख्यात प्रसिद्ध संत कुलदर्शन विजय जी ने बताया कि चाहे कोई सी भी रामायण उठाकर देख लो सोने की लंका बनाने वाले रावण को अपरिमित शक्ति का धनी बताया गया है। रावण की ईश्वर के प्रति भक्ति भी संदेह से परे है। वह यदि युद्ध के मैदान में जाते थे, तो भगवान की मूर्ति का दर्शन किए बिना अन्न-जल ग्रहण नहीं करते थे। ईश्वर के हाथों उनके प्राण निकले हैं। इससे बढ़कर मुक्ति क्या होगी। जैन दर्शन में रावण अगली चौबीसी में तीर्थंकर पद को प्राप्त करेंगे। दशहरा पर्व मनाना हमारा तब सार्थक होगा, जब हम रावण के पुतले का नहीं अपने भीतर के रावण का दहन करें। धर्मसभा में नव पद ओली आराधना के पांचवे दिन साधु पद की महिमा बताई गई। प्रारंभ में आचार्य कुलचंद्र सूरि जी ने सभी धर्माबलंबियों को मांगलिक पाठ दिया। धर्मसभा में संत कुलदर्शन विजय जी ने रावण के अद्भूत ज्ञान की चर्चा करते हुए कहा कि युद्ध के पश्चात जब रावण मरणासन्न अवस्था में थे, तब भगवान राम ने लक्ष्मण को उनके पास ज्ञान प्राप्ति हेतु भेजा। लक्ष्मण कुछ समय पश्चात वहां से लौट आए और कहा कि रावण ने उन्हें जीवन का राज नहीं बताया। इस पर भगवान ने कहा कि तुम रावण के समक्ष कहां खड़े हुए थे। गुरू के चरणों में ज्ञान मिलता है। सिर के पास खडे होने से नहीं। लक्ष्मण ने अपनी गलती मानी और दोबारा विनयपूर्वक रावण के पास पहुंचे। तब रावण ने उन्हें बताया कि एक तो शुभ कार्य में कभी विलंब नहीं करना चाहिए। मुझे मंदोदरी ने शुभ और अशुभ कार्य बताते हुए सीता को राम के पास छोडऩे के लिए कहा था, लेकिन मैंने उसकी बात नहीं मानी। जिसका परिणाम आज मैं भोग रहा हूं। जीवन के दूसरे दर्शन की चर्चा करते हुए रावण ने लक्ष्मण जी को बताया कि शत्रू को कभी कमजोर न समझें। मैंने राम और बंदरों की सेना को कमजोर समझने की भूल की। तीसरा महत्वपूर्ण ज्ञान रावण ने लक्ष्मण को दिया कि अपने राज की बात कभी किसी को मत बताओ। यहां तक कि अपने भाई और सगे संबंधियों को भी नहीं। इसी के परिणामस्वरूप आज मैं मृत्यु शैयां पर पड़ा हुआ हूं। महाराज श्री ने बताया कि अलवर जैन मंदिर में रावण की मूर्ति अगली चौबीसी में रावण पाश्र्वनाथ के रूप में वहां विराजमान हैं। उन्होंने कहा कि दशहरा पर्व पर हम संकल्प लें कि हम अपने भीतर रावण रूपी दुर्गुणों का दहन करेंगे। इस दिन यदि हमारे भीतर से एक भी अवगुण समाप्त हो गया तो हमारा दशहरा पर्व मनाना सार्थक हो जाएगा।
साधु भले ही न बन पाओ सीधे तो बन जाओ
नव पद ओली आराधना के पांचवे दिन साधु पद की महिमा का बखान करते हुए कहा कि ओली जी के 9 पदों में साधु पद मध्य में है। इससे स्पष्ट है कि उपाध्याय, आचार्य, अरिहंत और सिद्ध अवस्था तक पहुंचने के लिए साधु मार्ग से यात्रा प्रारंभ होती है। उन्होंने कहा कि भले ही आप साधु न बन पाओ लेकिन सीधे बनने में क्या दिक्कत है। उन्होंने साधु पद के 5 गुणों की चर्चा करते हुए कहा कि साधु आंतरिक शक्ति से सम्पन्न होता है और वह सदैव दूसरों की सहायता करने के लिए तत्पर्य रहता है। उन्होंने कहा कि साधु बनने के लिए मनुष्य को कुछ न कुछ खोना अवश्य पड़ता है, बिना खोये हुए कुछ प्राप्त नहीं होता। धन सम्पत्ति, स्वजन सुविधाओं और मन की इच्छाओं का त्याग करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि हम अच्छी बात सुनते हैं, समझते हैं, स्वीकार करते हैं लेकिन ग्रहण नहीं करते, परंतु साधु वहीं होता है, जो अच्छी बातों को स्वीकार करता है और हमेशा उसकी रूचि सीखने में रहती है। धर्मसभा में डूडा अधिकारी महावीर जैन भी उपस्थित थे, जिनका बहुमान चार्तुमास कमेटी के अध्यक्ष तेजमल सांखला, समाज के अध्यक्ष दशरथमल सांखला, मुकेश भांडावत, प्रवीण लिगा और विजय पारख ने किया।

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