* पीड़िता ने बड़ी बहन को बताई थी पिता की करतूत
Gwalior ग्वालियर। पिता-पुत्री के पवित्र रिश्ते को कलंकित करने वाले आरोपी पिता को न्यायालय ने दोषी मानते हुए आजीवन कारावास (अंतिम सांस तक) की सजा दी है और पचास हजार रुपए का जुर्माना लगाया है। इस केस में आरोपी पिता का डीएनए मैच नहीं हुआ था, लेकिन 12 साल से कम आयु की नाबालिग बेटी के कथन और मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर न्यायालय ने आरोपी को दोषी ठहराया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पिता द्वारा जुर्माने की राशि जमा कराने की स्थिति में उसे नाबालिग बेटी को बतौर क्षतिपूर्ति दिया जाए। साथ में पीडित प्रतिकर योजना के अंतर्गत 5 लाख की राशि प्रदान की जाए। मूल निवासी शिवपुरी एडीपीओ आशीष राठौर ने बताया कि 16 सितंबर 2020 को नाबालिग पीड़िता बड़ी बहन के घर पहुंची। अगले दिन जब बड़ी बहन ने उससे गुमसुम रहने का कारण पूछा तो उसने बताया कि पिता बीते एक साल से उसके साथ दुष्कर्म कर रहे हैं। बड़ी बहन ने इसके बारे में पति और सास को बताया। मामले की गंभीरता को देखते हुए परिजनों ने पिता से बात की लेकिन उसने गलत बर्ताव करते हुए उन्हें घर से बाहर निकाल दिया। स्थिति में सुधार नहीं होने पर परिजनों ने पुलिस थाना ग्वालियर में 22 सितंबर 2020 को रिपोर्ट दर्ज कराई। पुलिस को बताया कि आरोपी पिता सब्जी का ठेला लगाता है और हर 3 से 4 दिन के अंतराल में दुष्कर्म कर रहा था। पीड़िता के एक बड़ी बहन के अलावा दो और भाई भी हैं। रिपोर्ट कराने के बाद पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार किया। इसके बाद से आरोपी जेल में है।
डीएनए की रिपोर्ट निगेटिव मेडिकल रिपोर्ट से हुई पुष्टि
इस केस की खास बात ये रही कि आरोपी की डीएनए रिपोर्ट निगेटिव रही, लेकिन मेडिकल रिपोर्ट में लैंगिक हमले की पुष्टि हुई। रिपोर्ट में यहां तक बताया गया कि पिता ने वीभत्स तरीके से लैंगिक हमला किया। नाबालिग बेटी व परिजनों ने भी अभियोजन कहानी का समर्थन किया।
आइए जानिए, आजीवन कारावास और अंतिम सांस तक जेल में कैद के बीच अंतर
जेल अधीक्षक विदित सिरवैया ने बताया कि आजीवन कारावास की सजा में राज्य शासन को ये विशेषाधिकार रहता है कि वे 20 साल सजा काटने के बाद उसे रिहा करने का आदेश दे सकता है। लेकिन अंतिम सांस तक जेल में कैद की सजा के मामले में शासन को हस्तक्षेप का अधिकार नहीं रहता। न्यायालय ने आरोपी को 376 एबी व 376 (2) (एफ) (एन) में दोषी माना है। इसमें न्यूनतम सजा 10 साल तक है और अधिकतम सजा आजीवन कारावास की है। इसमें भी आजीवन कारावास को विस्तार से समझाते हुए अंतिम सांस तक जेल में ही कैद रखने का उल्लेख किया है।

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