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धमाका खास खबर: क्या पितृपक्ष में पितरों का श्राद्ध करना जरूरी है? श्राद्ध न करने से क्या होगा?: ज्योतिर्विद ब्रजेन्द्र श्रीवास्तव

सोमवार, 9 अक्टूबर 2023

/ by Vipin Shukla Mama
वस्तुतः श्राद्ध पूर्वजों के प्रति श्रद्धा व कृतज्ञता व्यक्त करने का एक तरीका है जिसे धर्मशास्त्र में कर्मकांड रूप दे दिया गया है।
समाजशास्त्र की सामाजिक दृष्टि से देखें तो समाज की नींव परस्पर सहयोग पर टिकी है ।
स्वजन व समाज और ईश्वर हमारे लिए जो कुछ करता है,सक्षम हो जाने पर उसके बदले में हमें कृतज्ञता भाव से कुछ करना चाहिए इसे ही मातृ ऋण पितृ ऋण पूर्वज ऋण देव ऋण इत्यादि कहा गया है।
अब इस भाव को यदि नागरिक शास्त्र समाजशास्त्र नीति शास्त्र ethics इत्यादि की किसी टेक्स्ट बुक तक सीमित कर दिया जाए तो इसका व्यवहार में चलन थोड़े ही समय मे बाहर हो जाएगा।
इसी लिए श्राद्ध पक्ष व श्राद्ध कर्म बनाया गया है। जो कर्मकाण्ड श्राद्ध पक्ष के लिए बताया गया है इसमें जलांजलि से तर्पण और1 कौआ2 कुत्ता 3चींटी 4गौ और 5 स्वाध्यायी समाज आश्रित ब्राह्मण शामिल हैं इसे बलि वैश्व यज्ञ भी कहते हैं जो गृहस्थों के लिए नित्य करणीय माना गया है।
इसके पीछे एक बड़ा कारण प्राणी मात्र में विश्वात्मा को देखने के भाव को बलवान बनाना भी है।
आरम्भ में पूर्व मीमांसा दर्शन में कर्मकाण्डीयज्ञ को अति महत्व दिया गया इससे यह बोझिल होता गया पर बाद में यज्ञ की परिभाषा में दार्शनिक भाव जुड़ता गया तथा ज्ञान को स्वाध्याय को अतिथि सेवा को भी यज्ञ कहा गया।
इसी क्रम उक्त पाँच यज्ञों को पूर्वजों के निमित्त मान्य कर इसे श्राद्ध पक्ष में शामिल कर दिया गया जो वर्तमान में प्रचलित है।
प्रश्न है कि यदि उक्त कर्मकाण्ड नहीं किया जाए तो?
इसका उत्तर शास्त्र अनुसार यह है कि उक्त 5 के निमित्त अन्न दान व पूर्वजों को तर्पण नहीं किया जा सकता तो , लिखा है किजंगल मे चला जाए और एकांत में ऊर्ध्व बाहु होकर यह कहे कि
हे मेरे समस्त पूर्वजो, मुझे क्षमा करें ।मैं आपके प्रति श्रध्दा से सिर झुकाते प्रणाम करता हूँ।
ऐसा कहकर वापस आजाए।
★इस का अर्थ यही हुआ कि श्राद्ध कर्म में अग्नि में आहुति, तर्पण का कर्मकाण्ड व पांच जीवों को अन्न दान का कर्मकाण्ड तो सामान्य जन में केवल संस्कार आदत परम्परा बनाए रखने के लिए है ★जबकि श्राद्ध के मूल में श्रद्धा ही प्रधान भाव है।
वस्तुतः श्रद्धा रूप पुष्प के साथ कई और भाव भी पंखुड़ियों की तरह जुड़े होते है। जिनमें श्रध्दा के साथ विनय कृतज्ञता आत्मीयता व सहअस्तित्व शामिल होते हैं।
सोशल लेबलपर ये भाव व्यक्ति को एक दूसरे से जोड़े रखने में सीमेंटिंग फोर्स का जोड़ने वाली शक्ति का कार्य करता है।
धर्म वैसे भी बाह्य स्तर और सामाजिक आचार social conduct से अधिक कुछ नहीं है ( आंतरिक स्तर पर धर्म अंतर्यात्रा है-मैं कौनसृष्टि क्या ईश्वर क्या इत्यदि)
इस प्रकार, श्राद्ध के मूल में श्रद्धा है कर्मकाण्ड तो प्रतीक है आनुषांगिक है। यही श्रद्धा ज्ञान भी देती है-श्रद्धावान लभते ज्ञानम।
दान देने में भी श्रद्धा भाव ही सबसे ऊपर है:
★श्रद्धया देयं अश्रद्ध या अदेयम ।
दान श्रध्दा पूर्वक ही दें ।श्रद्धा रहित दान बिल्कुल भी नहीं दें।
आजकल तो दो बिस्कुट के दान के चित्र छपाए जाते हैं ऐसा दान व्यर्थ है।
इसलिए श्राद्ध कर्म नहीं किया जाए तो श्रध्दा तो अनिवार्यतः व्यक्त करना ही होगी ।यह अनिवार्यता कृतज्ञता ज्ञापन की आदत डालने के लिए है।कृतज्ञता रहित कृतघ्नता के कारण ही तो वृद्धाश्रम की संख्या बढ़ रही है जिसके लिए टैक्स लगाने की जरूरत पड़ेगी। कृतज्ञता के कारण ही मित्र समाज व देश पृथ्वी से लिया लौटने का ,चौथे पन के वानप्रस्थ में जन सेवा का भाव अंकुरित होता है।
निष्कर्ष:
1श्राद्ध पक्ष में श्राध्द करना जरूरी? श्राध्द कभी भी किया जा सकता है पर श्राध्द पक्ष एक सुनिश्चित समय की सुविधा देता है।
2 श्राद्ध करना जरूरी है? श्राद्ध से आशय श्रध्दा व्यक्त करना है ,यह श्रद्धा व्यक्त करना बिल्कुल जरूरी है जो मनसे श्रद्धा पूर्वक पूर्वजों का स्मरण करते हुए उनसे क्षमा मांग कर की जानी चाहिए।
3 श्राद्ध न करनेसे क्या होगा? प्रकृति स्वयं न्याय करती है अपने पूर्वजों के प्रति कृतघ्नता बरतने पर व किसी भी रूप में श्रद्धा व्यक्त नहीं करने पर स्वयं पर स्वयं की संतति पर कष्ट क्लेश सम्भव माने जाते हैं।यद्यपि इनको प्रमाणित करना सदैव सम्भव नही।4 पूर्वजों के कृतकर्म के कुफल भी भोगने पड़ सकते हैं जिसे पितृ दोष कहा गया है।यह मान्यता धर्मशास्त्र जन्य है। महाभारत में युधिष्ठिर का भीष्म से इस पर प्रश्नोत्तर भी है।इस पर मेरी पुस्तक में एक अध्याय ही है।
★★ ऋषि भ्यः पूवर्जेभ्यः पूर्वेभ्यः पथिकृद्भ्य★★
साधारण भाव अर्थ:हमारे पूर्वज ऋषियों को नमस्कार है, हम उनके प्रति कृतज्ञ हैं जिन्होंने हमारे लिए इस शोभामय मार्ग का निर्माण किया है जिस पर चल कर हम आज यहाँ तक आ सके हैं ।
पुनश्च:श्राध्द से जुड़े अन्यप्रश्न भी हैं जैसे पूर्वजों की उनके कर्म से या श्राद्ध से मुक्ति, स्वयं के कष्ट पूर्वजों के कृत कर्म से अथवा उनके शाप से इत्यादि इन्हें प्रश्नोत्तर के दायरे से बाहर रखा गया है।













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