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महिलाओं के अस्तित्व, अस्मिता एवं उनके योगदान के लिए दायित्वबोध की चेतना का दिया संदेश

मंगलवार, 28 नवंबर 2023

/ by Vipin Shukla Mama
अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस  पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित
महिलाओं के अस्तित्व, अस्मिता एवं उनके योगदान के लिए दायित्वबोध की चेतना का संदेश: बबिता कुर्मी महिला समाजिक कार्यकर्त्ता 
शिवपुरी।  अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा-उन्मूलन दिवस पर महिलाओं के अस्तित्व, अस्मिता एवं उनके योगदान के लिए दायित्वबोध की चेतना का संदेश छुपा है, जिसमें महिलाओं के प्रति बढ़ रही हिंसा को नियंत्रित करने का संकल्प लेना जरुरी है। 25 नवंबर को महिलाओं के खिलाफ हिंसा उन्मूलन का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है।  जिसके तहत शक्ती शाली महिला संगठन द्वारा शिवपुरी के अति पिछड़े आदिवासी बाहुल्य गांव चितोरी खुर्द, पतारा एवम मझेरा में एक सैकड़ा से अधिक महिलाओ को महिला अधिकारों के बारे में जागरूक किया। अधिक जानकारी देते हुए कार्यक्रम संयोजक बबिता कुर्मी एवम पिंकी चौहान ने बताया की विश्व भर में हर तीन में से एक 15 साल से अधिक उम्र की महिला, किसी न किसी रूप में हिंसा का शिकार हुई है। संयुक्त राष्ट्र (यू.एन. वूमेन) के आंकड़ों के अनुसार महिलाओं के खिलाफ हिंसा के 74 करोड़ से भी अधिक मामले प्रकाश में आये  हैं। ग्रामीण इलाके में इस तरह के केवल कुछ प्रतिशत मामले दर्ज़ होते है। स्त्रियों पर हो रहे अत्याचार की समस्या का संबंध कानून या कानून क्रियान्वयन से नहीं बल्कि समाज में व्याप्त सदियों से चली आ रही मानसिकता से है जहां स्त्रियों को छोटा या दोयम दर्जे का या "भोग "की वस्तु माना जाता  है। यह सोच मात्र उचित शिक्षा एवं पारिवारिक संस्कार से ही बदली जा सकती है। सुपोषण सखी नर्मदा ने कहा की  अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा-उन्मूलन दिवस पर महिलाओं के अस्तित्व, अस्मिता एवं उनके योगदान के लिए जागरूकता अभियान के रूप में मनाते है  जिसमें महिलाओं के प्रति बढ़ रही हिंसा को नियंत्रित करने का संकल्प लेना जरुरी है। यह दिवस हमें इंसान बन के नारी-हिंसा के खिलाफ मुखर होने के लिए प्रेरित करता है इस दिवस का मूल्य केवल नारी तक सीमित न होकर सम्पूर्ण मानवता से जुड़ा है।  करन सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा की दलित एवं अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं साथ  ऐसी घटनाएं अधिक होती हैं क्योंकि उनमें शिक्षा और सुरक्षा कम होती है और वे शिकायत नहीं कर पाती हैं। सुमन आदिवासी ने बताया कि एक फेमस  कथन 'स्त्रियां पैदा नहीं होतीं बना दी जाती हैं 'को बदलने का समय आ चुका है। प्रोग्राम में तीनों गांव की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सहायिका सुपोषण सखी एवम समुदाय की महिलाओं के साथ साथ शक्ती शाली महिला संगठन की पूरी टीम ने भाग लिया।

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