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धमाका धर्म: #Premanand Ji Maharaj: #वृंदावन वाले #प्रेमानंद_जी_महाराज_के_लिए #हर_रात_दो_बजे_सड़कों पर इस तरह #रंगोली #सजाते हैं #लोग, #दर्शनों को #उमड़ता है #जन_सैलाव, #देखिए_तस्वीरें और #यू_ट्यूब_पर _वीडियो

रविवार, 26 नवंबर 2023

/ by Vipin Shukla Mama
Premanand Ji Maharaj: प्रेमानंद जी महाराज वृंदावन में राधारानी के भजन-कीर्तन करते हैं. वे भजन मार्ग व कथा के द्वारा मोक्ष प्राप्ति का ज्ञान देते हैं. इन दिनों उन्होंने पूरे वृंदावन को एक सूत्र में बांध दिया है. आप हर रात दो बजे अपने निवास से आश्रम के लिए पैदल निकलते हैं और उनके इसी रास्ते पर हजारों भक्तों की भीड़ रंगोली बनाकर उनका स्वागत करती है, पुष्पवर्षा करती है. हर रात दिवाली जैसा नजारा देखने को मिलता हैं. आइए आपको यकीन दिलाती कुछ तस्वीरें हम दिखाते हैं.
प्रेमानंद जी महाराज का क्या है असली नाम, कैसे बने संन्यासी, जानिए
जानते हैं प्रेमानंद जी महाराज के जीवन के बारे में.Premanand Ji Maharaj: राधारानी के परम भक्त और वृंदावन वाले प्रेमानंद जी महाराज को भला कौन नहीं जानता. वे प्रसिद्ध संत हैं. यही कारण है कि उनके भजन और सत्संग में दूर-दूर से लोग आते हैं. प्रेमांनद जी महाराज की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई है.
कहा जाता है कि भोलेनाथ ने स्वयं प्रेमानंद जी महाराज को दर्शन दिए. इसके बाद वे घर का त्याग कर वृंदावन आ गए. लेकिन क्या आप जानते हैं कि, प्रेमानंद जी महाराज ने क्यों साधारण जीवन का त्याग कर भक्ति का मार्ग चुना और महाराज जी संन्यासी कैसे बन गए. 
आइये जानते हैं प्रेमानंद जी महाराज के जीवन के बारे में.प्रेमानंद जी महाराज का जीवन परिचय ( Premanand Ji Maharaj Biography )
प्रेमानंद जी महाराज का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ. प्रेमानंद जी के बचपन का नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे है. इनके पिता का नाम श्री शंभू पांडे और माता का नाम श्रीमती रामा देवी है. सबसे पहले प्रेमानंद जी के दादाजी ने संन्यास ग्रहण किया. साथ ही इनके पिताजी भी भगवान की भक्ति करते थे और इनके बड़े भाई भी प्रतिदिन भगवत का पाठ किया करते थे.प्रेमानंद जी के परिवार में भक्तिभाव का माहौल था और इसी का प्रभाव उनके जीवन पर भी पड़ा. प्रेमानंद जी महाराज बताते हैं कि, जब वे 5वीं कक्षा में थे, तभी से गीता का पाठ शुरू कर दिया और इस तरह से धीरे-धीरे उनकी रुचि आध्यात्म की ओर बढ़ने लगी. साथ ही उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान की जानकारी भी होने लगी. जब वे 13 वर्ष के हुए तो उन्होंने ब्रह्मचारी बनने का फैसला किया और इसके बाद वे घर का त्याग कर संन्यासी बन गए. संन्याली जीवन की शुरुआत में प्रेमानंद जी महाराज का नाम आर्यन ब्रह्मचारी रखा गया.संन्यासी जीवन में कई दिनों तक रहे भूखे
प्रेमानंद जी महाराज संन्यासी बनने के लिए घर का त्याग कर वाराणसी आ गए और यहीं अपना जीवन बिताने लगे. संन्यासी जीवन की दिनचर्या में वे गंगा में प्रतिदिन तीन बार स्नान करते थे और तुलसी घाट पर भगवान शिव और माता गंगा का ध्यान व पूजन किया करते थे. वे दिन में केवल एक बार ही भोजन करते थे. प्रेमानंद जी महाराज भिक्षा मांगने के स्थान पर भोजन प्राप्ति की इच्छा से 10-15 मिनट बैठते थे. यदि इतने समय में भोजन मिला तो वह उसे ग्रहण करते थे नहीं हो सिर्फ गंगाजल पीकर रह जाते थे. संन्यासी जीवन की दिनचर्या में प्रेमानंद जी महाराज ने कई-कई दिन भूखे रहकर बिताया.
प्रेमानंद जी के वृंदावन पहुंचने की चमत्कारी कहानी
प्रेमानंद महाराज जी के संन्यासी बनने के बाद वृंदावन आने की कहानी बेहद चमत्कारी है. एक दिन प्रेमानंद जी महाराज से मिलने एक अपरिचित संत आए और उन्होंने कहा श्री हनुमत धाम विश्वविद्यालय में श्रीराम शर्मा के द्वारा दिन में श्री चैतन्य लीला और रात्रि में रासलीला मंच का आयोजन किया गया है, जिसमें आप आमंत्रित हैं. पहले तो महाराज जी ने अपरिचित साधु को आने के लिए मना कर दिया. लेकिन साधु ने उनसे आयोजन में शामिल होने के लिए काफी आग्रह की, जिसके बाद महाराज जी ने आमंत्रण स्वीकार कर लिया. प्रेमानंद जी महाराज जब चैतन्य लीला और रासलीला देखने गए तो उन्हें आयोजन बहुत पसंद आया. यह आयोजन लगभग एक महीने तक चला और इसके बाद समाप्त हो गया.चैतन्य लीला और रासलीला का आयोजन समाप्त होने के बाद प्रेमानंद जी महाराज को आयोजन देखने की व्याकुलता होने लगी कि, अब उन्हें रासलीला कैसे देखने को कैसे मिलेगी. इसके बाद महाराज जी उसी संत के पास गए जो उन्हें आमंत्रित करने आए थे. उनसे मिलकर महाराज जी कहने लगे, मुझे भी अपने साथ ले चलें, जिससे कि मैं रासलीला को देख सकूं. इसके बदले मैं आपकी सेवा करूंगा.संत ने कहा आप वृंदावन आ जाएं, वहां आपको प्रतिदिन रासलीला देखने को मिलेगी. संत की यह बात सुनते ही, महाराजी को वृंदावन आने की ललक लगी और तभी उन्हें वृंदावन आने की प्रेरणा मिली. इसके बाद महाराज जी वृंदावन में राधारानी और श्रीकृष्ण के चरणों में आ गए और भगवद् प्राप्ति में लग गए. इसके बाद महाराज जी भक्ति मार्ग में आ गए. वृंदावन आकर वे राधा वल्लभ सम्प्रदाय से भी जुड़े.
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि mamakadhamaka.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें. 


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