शिवपुरी। न्यायालय तृतीय अपर सेशन न्यायाधीश न्यायाधीश शिवपुरी श्री विद्यान माहेशवरी द्वारा दहेज प्रताडना अपराध की अपील प्रकरण में शिकायतकर्ता के पति तथा सास को भारतीय दण्ड विधान की धारा 498 ए. 323/34 तथा दहेज प्रतिषेध अधिनियम की धारा 3/4 में दोषमुक्त का निर्णय पारित किया है।
प्रकरण के संक्षिप्त में फरियादिया सोनी गोस्वामी ने पुलिस शिकायत दर्ज की थी कि उसका विवाह विनोद गोस्वामी के साथ हुआ था तथा उसके माता पिता भाई ने सामर्थ अनुसार दान दहेज दिया था उसके बाद भी उसका पति विनोद गोस्वामी तथा सास गुड्डी गोस्वामी 2 लाख रुपये दहेज लाने को कहते थे, इसके बाद मेरे परिवार वालों ने काफी समझाईश दी और वह लोग नहीं माने और दिनांक 24.07.2020 को मार-पीट की है जिस पर से पुलिस द्वारा शिकायतकर्ता के पति तथा सास के विरूद्ध भारतीय दण्ड विधान की धारा 498 ए. 323/34 तथा दहेज प्रतिषेध अधिनियम की धारा 3/4 की कायमी की गई थी और वाद विवेचना चालान न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया था। प्रकरण के विचारण के दौरान उभय पक्ष की साक्ष्य तथा अंतिम तर्क श्रवण कर न्यायालय द्वारा निर्णय पारित करते हुये आरोपीगण को दोषमुक्त किया है। अपने निर्णय में माननीय न्यायालय द्वारा उच्चतम न्यायालय के विभिन्न न्याय दृष्टांतों को तथा बचाव पक्ष के अधिवक्ता संजीव बिलगैयां द्वारा तर्क के दौरान किये गये न्यायिक एवं कानूनी बिंदू को अपनेनिर्णय में उल्लेखित करते हुये लिखा है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस आशय के सिद्धांत प्रतिपादित किये गये है कि संहिता की धारा 498 क के अंतर्गत दण्डनीय अपराध के मामले में पति और उसके निकट रिश्तेदारों को फसाये जाने की प्रवृति असामान्य नहीं है और इसलिये इस तरह के मामलो में न्यायालय को बहुत ही सावधान एवं सर्तक होना चाहिये और व्यवहारिक वास्तविकताओं पर भी विचार किया जाना चाहिये और लगाए गये आक्षेपों के संबंध में बहुत की सूक्ष्मता से और बहुत ही सावधानी से विचार करना चाहिये। माननीय न्यायालय द्वारा विभिन्न न्याय दृष्टांतों में प्रतिपादित सिद्धांतों को दृष्टिगत रखते हुये इस प्रकरण में अभिलेख पर उपलब्ध साक्ष्य पर सूक्ष्मता से विचार उपरांत आरोपीगण पति तथा सास को विचारण न्यायालय जे.एम.एफ.सी. शिवपुरी ने दोषमुक्त करने का निर्णय पारित किया है। जिसकी अपील फरियादिया ने सत्र न्यायाधीश के समक्ष की थी. इसके उपरांत न्यायालय सत्र न्यायाधीश द्वारा विचारण न्यायालय के दोषमुक्ति के निर्णय को स्थर रखते हुये फरियादिया की अपील निरस्त की है तथा अपने निर्णय में निर्धारित किया है कि, विचारण न्यायालय के निर्णय में दिये गये निष्कर्ष में कोई अवैधता अनुचितता अथवा विधि या तयि की त्रुटि नहीं पायी जाती है। परिणामस्वरूप वर्तमान दोषमुक्ति के विरूद्ध के विरुद्ध अपील में विचारण न्यायालय के निर्णय में हस्तक्षेप किये जाने के पर्याप्त आधान नहीं है। प्रकरण में आरोपीगण की ओर से पैरवी संजीव बिलगैयाँ अधिवक्ता द्वारा की गई।

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