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#धमाका धर्म: प्रयागराज जहाँ श्री राम ने जीवन बिताया वहां से स्वच्छता का कुंभ में संदेश देंगे: वैदिक विदुषी अंजली आर्या

शुक्रवार, 20 दिसंबर 2024

/ by Vipin Shukla Mama
* श्री राम कथा में पंचम दिवस पंजाबी सिक्ख, कुशवाह, कायस्थ, राठौर, लायन्स केट, रामसहाय ट्रांसपोर्ट ने किया स्वागत
शिवपुरी। प्रयागराज वह पावन भूमि है जहां अमृत प्रदान करने वाली गंगा अविरल बहती है,जहाँ मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने मर्यादा के साथ जीवन व्यतीत किया वहां आयोजित होने वाले कुम्भ से पर्यावरण स्वच्छता का संदेश हमे देना है।उक्त उद्गार पंचम दिवस महर्षि वाल्मीकि कृत रामकथा में विदुषी वक्ता दीदी अंजली आर्या ने व्यक्त किये।
राममय नगर को कर देने वाली रामकथा में गांधी पार्क में दीदी अंजली आर्या ने कहा कि आज दुनिया मे दो मत चल रहे है एक वह जो तलवार के बल पर चल रहे है दूसरे वह जो राम और कृष्ण के संदेश को लेकर वसुधेव कुटुम्बकम के भाव के साथ जी रहे है,पंरन्तु रामायण ही सिखाती है कि अन्याय के आगे जब विनम्रता टूटने लगे तब धनुष प्रतिकार के लिए उठाना ही पड़ेगा।आज अमेरिका और जापान में शिक्षा के माध्यम से वहां की संस्कृति मान्यताएं,और विचारों को बढ़ाने के लिए कार्य कर रही है तो भारत मे ऐसा क्यों नही?क्या भारत के बच्चों को जानने का अधिकार नही की गौरवशाली गाथा हमारी क्या है?
सड़को पर गौ माता घूम रही है लावारिस उसे पूजने की और सम्मान देने की सीख देती है रामायण
गुरुत्वाकर्षण का नियम महर्षि कणाद और पतंजलि ने बताया क्यों नही पाठ्यक्रमो में बताया जा रहा,गाय का कलेजा खाने वालों को तो पढ़ा रहे है पर गाय की रक्षा करने वालो को क्यों नही बताया जा रहा।जो देश मान्यताओं को मजबूती से पकड़ लेता है वही जीवित रहता है।
राजा दशरथ के वचनों का पालन किया,ऋषि मुनियों की सेवा में वन वन घूमे,और भरत ने राजकाज आश्रम से संचालित किया ऐसा अनुपम उदाहरण विश्व मे केवल रामायण के माध्यम से भारत मे ही मिलता है।इस कथा का मूल उद्देश्य जड़ो की और लौटना है,पास में कौन जाती का बन्धु बैठा है ये भाव नही बल्कि मेरा भाई बैठा है यही रखना है।आज विनम्र राम की नही दंडक वन को राक्षसों से मुक्त करने वाले धनुषधारी राम की जरूरत है।माताओं आज छत्तीस टुकड़े करवाने की नही छप्पन टुकड़े करने की है।
हमारे यहां तो यज्ञ की परंपरा थी माता पिता के मृत होने पर अच्छे कार्य करने की परंपरा थी ,दसरथ जी के मृत्यु लोक जाने के बाद भरत जी ने कोई भोज नही कराया बल्कि तीसरा करने के बाद वन में जाने के लिए निकल पड़े भ्राता राम को लेने जाने के लिए।श्रृंगवेरपुर में श्री राम ने निषादराज को गले लगाया,केवट ने नैया पार कराई,वन वासियों को गले लगाया यही मूल रामायण का सार है,हम सब बन्धु एक है,यही भाव प्रसारित होना चाहिए स्व का भाव जन जन में जाग्रत होना चाहिए पंच परिवर्तन के विषयों को लेकर जीवन मे उतारना चाहिए।
प्रयागराज जहाँ सदैव यज्ञ होते रहते थे पर्यावरण पुष्ट रखने का केंद्र था वही से पुनः स्वच्छता का संदेश कुम्भ के माध्यम से देना है।भाई भाई में राम और भरत जैसे प्रेम को बढ़ाना है अपना कुटुंब बचाना है रिश्तों में मजबूत गांठ फिर से लगानी है।समरसता का मंत्र घर घर देना है।
पांचवे दिन सिक्ख एवम पंजाबी परिषद कुशवाह समाज, कायस्थ समाज, सनातन धर्म प्रेमी मंडल, राठौर समाज, खंडेलवाल महिला मंडल, ब्राह्मण विवाह समिति व प्रसाद वितरण व्यवस्था वाले लायन्स क्लब,केट संस्था, रामसहाय ट्रांसपोर्ट ने दीदी अंजली आर्या का स्वागत किया।आभार मुख्य यजमान इंद्रजीत चावला ने व्यक्त किया।















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