भूल भई जो हुई पुरखों से, सुधार बनाय के नाम जिया है
रक्त सनी जो रही अवधेश की, भक्ति मय जस काम जिया है
रंग में डूबे हैं भक्त सखा,नर-नार सुखी ऐसा धाम जिया है।
सूनी पड़ी अवधेश अयोध्या जो, रंग उमंग नहाई अयोध्या।
रामलला, जो रहे विकला,सबला सफला, वो सजाई अयोध्या।
तीर सजे,नव नीर बहे, सरयू तट प्रीति बहाई अयोध्या।
बैठी थी आस लगाए रही, तुलसी हुलसी मुसकाई अयोध्या।
फूल खिले, मनमीत मिले घर आंगन द्वार सजाई अयोध्या
भक्तन को सुख शांति मिली,भज राम जु राम सुनाई अयोध्या।
राम जू आयेंगें आस रही,हर स्वांस में राम बसाई अयोध्या।

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