इससे पहले ये दो चौथाई बहुमत के साथ स्वीकार होता था। नियम में संशोधन के बाद भी अब अध्यक्षों के खिलाफ प्रस्ताव लाने की तैयारी हो रही है। इसमें बीजेपी के ही पार्षद अपने पार्टी अध्यक्ष के खिलाफ बगावत करने पर आमादा है।
इसलिए सरकार ने नियम बदला था नगर पालिका अधिनियम 1961 की धारा 43 (क) में ये हुआ बदलाव
पहले की बात करें तो निर्वाचित अध्यक्ष-उपाध्यक्ष का कार्यकाल 2 साल पूरे होने के बाद अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता था। बाद में सरकार ने दो साल की अवधि बढ़ाकर तीन साल कर दी।
16 नगर निगम के मेयर पर ये लागू नहीं
मेयर का चुनाव जनता ने किया है। अगर कुल पार्षदों में से छठवें भाग के बराबर पार्षद मेयर के खिलाफ एक साथ शिकायत करते हैं तो कलेक्टर हटाने की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं।
6-11 अगस्त के बीच पूरा होगा 3 साल का कार्यकाल
सूत्रों के अनुसार डॉ. मोहन सरकार ने भले ही अधिनियम बदलकर निकायों के अध्यक्षों को कुर्सी बचा ली, लेकिन तीन साल की अवधि पूरी होने पर पार्षद फिर अपने अधिकार का उपयोग करने की तैयारी कर रहे हैं। इसकी वजह यह है कि निकायों में अध्यक्षों का तीन साल का कार्यकाल 6 अगस्त से लेकर 11 अगस्त के बीच पूरा होना है। इसके बाद ही अविश्वास प्रस्ताव कलेक्टर को दिया जा सकता है। ऐसे में अध्यक्षों के खिलाफ बगावती तेवर अपनाने वाले पार्षद पर्दे के पीछे रणनीति बना रहे हैं। माना जा रहा है कि पिछले साल जिन अध्यक्षों को कुर्सी से उतारने की कवायद हुई उससे वहीं ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव आने की उम्मीद इस बार ज्यादा है।

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