जन्माष्टमी का पर्व देशभर में बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। इस बार 30 अगस्त, सोमवार को देशभर में जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाएगा। जन्माष्टमी को लेकर जोरदार तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। घर से लेकर मंदिरों में भी आयोजन होंगे। आकर्षक ढंग से बिजली कि सजावट की गई है वहीं बैलून, फूल मालाओं से सजावट देखते ही बन रही है। रात 12 बजे भगवान का जन्म होगा इसके पूर्व लोग व्रत रखकर भजन, गीतों का आनंद लेंगे। पण्डित अरुण शर्मा ने बताया कि शिवपुरी के मंशापूर्ण मन्दिर पर भी आयोजन होगा।
जन्माष्टमी व्रत की विशेष महिमा
पण्डित विकासदीप शर्मा मंशापूर्ण ज्योतिष शिवपुरी के अनुसार जो जन्माष्टमी का व्रत रखता है उसको करोडों एकादशी करने का पुण्य प्राप्त होता है और उसके रोग-शोक दूर हो जाते है।
जन्माष्टमी को रात्रि जागरण करके, ध्यान-जप आदि का विशेष महत्त्व है। ब्रह्माजी सरस्वती से कहते हैं और भगवान श्री कृष्ण अपने भक्त उद्धव को बताते हैं कि "जो जन्माष्टमी का व्रत रखता है, उसे करोड़ों एकादशी करने का पुण्य प्राप्त होता है और उसके रोग शोक दूर हो जाते हैं।"
धर्मराज सावित्री देवी को कहते हैं कि "जन्माष्टमी का व्रत 100 जन्मों के पापों से मुक्ति दिलाने वाला है।"
उपवास से भूख प्यास आदि कष्ट सहने की आदत पड़ जाती है जिससे आदमी का संकल्प बल बढ़ जाता हैl इंद्रियों के संयम से संकल्प की सिध्दि होती है, आत्म विश्वास बढ़ता है जिससे आदमी लौकिक फायदे अच्छी तरह से प्राप्त कर सकता है l इसका मतलब यह नहीं कि व्रत की महिमा सुनकर मधुमयवाले या कमजोर लोग भी निर्जला व्रत रखें।
बालक, अति कमजोर तथा बूढ़े लोग अनुकूलता के अनुसार थोड़ा फल आदि खाएं।
भविष्य पुरण में लिखा है कि जन्माष्टमी का व्रत अकाल मृत्यु नहीं होने देता है।
जो जन्माष्टमी का व्रत करते हैं उनके घर में गर्भपात नहीं होता। बच्चा ठीक से पेट में रहता है और ठीक समय बालक का जन्म होता है।
जन्माष्टमी के दिनों में मिलने वाला पंजरी का प्रसाद वायु नाशक होता है। उसमें अजवाइन जीरा व गुड़ पड़ता है। इस मौसम में वायु की प्रधानता हेतु पंजीरी खाने खिलाने का उत्सव आ गया। ये मौसम मंदागिनी का भी है। उपवास रखने से मंदगिनी दूर होगी। और शरीर मे जो अनावश्यक द्रव पड़े है, उपवास करने से वे खींच कर जठर में आकर स्वाहा हो जाएंगे।
शारीरिक स्वास्थ्य मिलेगा तो पंजीरी खाने से वायु का प्रभाव दूर होगा और व्रत रखने से चित में भगवतीय आनंद, भगवतीय प्रसन्नता उभरेगी तथा भगवान का ज्ञान देनेवाले गुरु मिलेंगे तो ज्ञान में स्थिति भी होगी। अपनी संस्कृति के एक एक त्यौहार और एक एक खान पान में ऐसी सुंदर व्यवस्था है कि आपका शरीर स्वस्थ रहे, मन प्रसन्न रहे और बुध्दि में बुद्धिदाता का ज्ञान छलकता जाए। जन्माष्टमी के दिन किया हुआ जप अनंत गुना फल देता है तो हम भी जप करेंगे, पूज्य गुरुदेव के स्वास्थ्य , आरोग्य लाभ के लिये। जन्माष्टमी के दिन किया हुआ जप अनंत गुना फल देता है, उसमे भी जन्माष्टमी की पूरी रात जागरण करके, जप ध्यान का विशेष महत्व है।
इस तिथि का इस पर्व का हम अवश्य लाभ लें। व्रत उपवास करके सकंल्प करें पूज्य गुरुदेव के आगमन के लिये, पूज्य गुरुदेव के उत्तम स्वास्थ्य के लिये।
जानिये जन्माष्टमी
जन्माष्टमी का त्योहार भादप्रद की अष्टमी को मनाया जाता है। इसी तिथि पर मध्यरात्रि में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। कृष्ण जी के जन्म लेते ही सभी जगह प्रकाश हो गया था। जब वासुदेव जी कृष्ण जी को गोकुल लेकर जा रहे थे तो अचानक यमुना जी के जल में लहरें उठने लगी और कृष्ण जी के चरण स्पर्श करते ही यमुना जी का जलस्तर कम हो गया। शेषनाग ने कृष्ण जी पर छाया की। कृष्ण जी ने बालरुप से लेकर अपने जीवन में कई लीलाएं की और लोगों को कंस के अत्याचार से मुक्त करवाया। इस बार जन्माष्टमी का त्योहार 30 अगस्त को मनाया जा रहा है।
आइए जानते हैं क्या है कृष्ण जी के जन्म की पूरी कथा
द्वापर युग में मथुरा में राजा उग्रसेन का राज था। कंस उनका पुत्र था। लेकिन राज्य के लालच में अपने पिता को सिंहासन से उतारकर वह स्वयं राजा बन गया और अपने पिता को कारागार में डाल दिया। देवकी कंस की चचेरी बहन थी। देवकी का विवाह वासुदेव के साथ हुआ, कंस ने अपनी बहन का विवाह पूरे धूमधाम के साथ किया और खुशी से विवाह की सभी रस्मों को निभाया। जब बहन को विदा करने का समय आया तो कंस देवकी और वासुदेव को रथ में बैठाकर स्वयं ही रथ चलाने लगा।
तभी अचानक ही आकाशवाणी हुई कि देवकी का आठवां पुत्र ही कंस काल होगा। आकाशवाणी सुनकर कंस तुरंत ही अपनी बहन को मारने के लिए तत्पर हो गया। लेकिन वासुदेव ने उसे समझाते हुए कहा कि तुम्हें अपनी बहन देवकी से कोई भय नहीं है, देवकी की आठवीं संतान से भय है। इसलिए वे अपनी आठवीं संतान को कंस को सौंप देंगे। कंस ने वासुदेव की बात मान ली। लेकिन उसने देवकी और वासुदेव को कारागार में कैद डाल दिया। जब भी देवकी की कोई संतान होती तो कंस उसे मार देता इस तरह से कंस ने एक-एक करके देवकी की सभी संतानों को मार दिया। और फिर भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण जी ने जन्म लिया। श्रीकृष्ण के जन्म लेते ही कारागार में एक तेज प्रकाश छा गया। कारागार के सभी दरवाजे स्वतः ही खुल गए, सभी सैनिको को गहरी नींद आ गई। वासुदेव और देवकी के सामने भगवान विष्णु प्रकट हुए और कहा कि उन्होंने ही कृष्ण रुप में जन्म लिया है। विष्णु जी ने वासुदेव जी से कहा कि वे उन्हें इसी समय गोकुल में नन्द बाबा के यहां पहुंचा दें, और उनकी कन्या को लाकर कंस को सौंप दें, वासुदेव जी गोकुल में कृष्ण जी को यशोदा जी के पास रख आए वहां से कन्या को ले आये, और कन्या कंस को दे दी। वह कन्या कृष्ण की योगमाया थी। जैसे ही कंस ने कन्या को मारने के लिए उसे पटकना चाहा कन्या उसके हाथ से छूटकर आकाश में चली गई। और तभी भविष्यवाणी हुई कि कंस को मारने वाले ने जन्म ले लिया हैं और वह गोकुल में पहुंच चुका है। तब से कृष्ण जी को मारने के लिए कंस ने कई राक्षसों को भेजा लेकिन बालपन में भगवान ने कई लीलाएं रची, और सभी राक्षसों का वद कर दिया। जब कंस ने कृष्ण को मथुरा में आमंत्रित किया तो वहां पर पहुंचकर भगवान श्रीकृष्ण ने कंस का वध करके प्रजा को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलवाई। और उग्रसेन को फिर से राजा बनाया।
तभी अचानक ही आकाशवाणी हुई कि देवकी का आठवां पुत्र ही कंस काल होगा। आकाशवाणी सुनकर कंस तुरंत ही अपनी बहन को मारने के लिए तत्पर हो गया। लेकिन वासुदेव ने उसे समझाते हुए कहा कि तुम्हें अपनी बहन देवकी से कोई भय नहीं है, देवकी की आठवीं संतान से भय है। इसलिए वे अपनी आठवीं संतान को कंस को सौंप देंगे। कंस ने वासुदेव की बात मान ली। लेकिन उसने देवकी और वासुदेव को कारागार में कैद डाल दिया। जब भी देवकी की कोई संतान होती तो कंस उसे मार देता इस तरह से कंस ने एक-एक करके देवकी की सभी संतानों को मार दिया। और फिर भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण जी ने जन्म लिया। श्रीकृष्ण के जन्म लेते ही कारागार में एक तेज प्रकाश छा गया। कारागार के सभी दरवाजे स्वतः ही खुल गए, सभी सैनिको को गहरी नींद आ गई। वासुदेव और देवकी के सामने भगवान विष्णु प्रकट हुए और कहा कि उन्होंने ही कृष्ण रुप में जन्म लिया है। विष्णु जी ने वासुदेव जी से कहा कि वे उन्हें इसी समय गोकुल में नन्द बाबा के यहां पहुंचा दें, और उनकी कन्या को लाकर कंस को सौंप दें, वासुदेव जी गोकुल में कृष्ण जी को यशोदा जी के पास रख आए वहां से कन्या को ले आये, और कन्या कंस को दे दी। वह कन्या कृष्ण की योगमाया थी। जैसे ही कंस ने कन्या को मारने के लिए उसे पटकना चाहा कन्या उसके हाथ से छूटकर आकाश में चली गई। और तभी भविष्यवाणी हुई कि कंस को मारने वाले ने जन्म ले लिया हैं और वह गोकुल में पहुंच चुका है। तब से कृष्ण जी को मारने के लिए कंस ने कई राक्षसों को भेजा लेकिन बालपन में भगवान ने कई लीलाएं रची, और सभी राक्षसों का वद कर दिया। जब कंस ने कृष्ण को मथुरा में आमंत्रित किया तो वहां पर पहुंचकर भगवान श्रीकृष्ण ने कंस का वध करके प्रजा को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलवाई। और उग्रसेन को फिर से राजा बनाया।

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