लेखक अरुण अपेक्षित
इंदौर मध्य प्रदेश
29 सितम्बर 2023
मैं लाल कॉलिज हूं। वर्षों से नगरवासी मुझे इसी नाम से जानते हैं। किंतु इतिहास साक्षी है कभी में ग्रांड-होटल के नाम से जाना जाता था। यही था मेरा असली नाम। मेरा निर्माण अंग्रेज-अफसरों, देसी रजबाड़ों के पदाधिकारियों तथा अमीरजादों के भोग-विलास तथा मौज-मस्ती के लिए हुआ था। स्वतंत्रता के उपरांत मुझे प्रमुख शिक्षा-संस्थान के रूप में विकसित किया गया। मेरे इस भवन में क्रमशः फिजीकल कॉजिल, पी.जी. कॉलिज और वर्तमान में गर्ल्स कॉलिज संचालित हुआ। वर्तमान में श्रीमती इन्द्रा गांधी कन्या महाविद्यालय के रूप में जाना जाता हूं। मैं मात्र एक भवन नहीं हूं, अपितु एक इतिहास हूं, कम से कम 125 वर्ष पुराना इतिहास। एक ऐसा इतिहास जिसने परतंत्र भारत की गुलामी से लेकर स्वतंत्र भारत की अनेक गौरवशाली क्षणों को अपने भीतर घटित होते हुए देखा है।
जैसा कि सब जानते हैं सन 1857 प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय में भी शिवपुरी में एक अंग्रेज सेना रहा करती थी, तब शिवपुरी जिला नहीं अपितु नरवर जिले की एक तहसील मात्र था। अंग्रेज-अफसरों ने यहां अपने निवास के लिए बड़ी-बड़ी कोठियां बनवाई थीं, आमोद-प्रमोद के लिए इटेलियन हाउस (शिवपुरी क्लब) बनवाया था, खेलने के लिए पोलो ग्राउन्ड तो शिकार खेलने के लिए शिकार-गाह और वाच-टावर बनवाये थे। शिवपुरी कोतवाली तब इम्पीरियल बैंक हुआ करता था। सरकिट हाउस रेजीडेंसी हाउस था। जार्ज पंचम के भारत आने पर उनके लिए जार्ज कैसल कोठी का निर्माण हुआ था जिसे हम बांकड़े की कोठी के नाम से जानते हैं। बांकड़े साहब एक इंजीनियर थे जिन्होंने इस कोठी के अलावा बांकड़े वाले हनुमानजी के मंदिर का भी निर्माण कराया था। शिवपुरी में निर्माण की दृष्टि से दो प्रकार की कोठियां हैं। प्रथम वे जो अंग्रेजों ने बनवाई थीं और दूसरी वो जो सन 1898 में शिवपुरी को सिंधिया राज्य की ग्रीष्म-कालीन राजधानी और जिला मुख्यालय बनाये जाने के बाद बनाई गई। महल, 52 कचहरी,(वर्तमान कलेक्टोरेट) टाउन-हाल इसी समय के निर्माण हैं। शिवपुरी को सामान्यतः कोठियों का नगर कहा जाता है- चिंताहरण हनुमान मंदिर के निकट जो कोठी नं. एक है वह सिंधिया राज्य की विख्यात नृत्यांगना के लिए बनवाई गई थी। इस नृत्यांगना का नृत्य प्रत्येक मंगलवार को स्थानीय छत्री में होता था। इसी तरह सभी कोठियों की अपनी कहानियां हैं। कुत्ता कोठी से लेकर उस कोठी तक की जिसमें अंग्रेजों ने अमर शहीद तात्या टोपे पर मुकदमे का नाटक किया था।
इसी प्रकार अंग्रेजों ने ही अपने आमोद-प्रमोद के लिए एक होटल का निर्माण कराया था जिसे उन्होंने ग्रांड-होटल नाम दिया था। समय के काल चक्र ने एक होटल को कैसे शिक्षा के महत्वपूर्ण केन्द्र में बदल दिया इसके लिए हमें इतिहास के और भी पन्ने पलटने होंगे।
सन 1951-52 तक शिवपुरी जिला मुख्यालय में दसवीं कक्षा (मैंट्रिक) से अधिक पढ़ने की व्यवस्था नहीं थी। सन 1951-52 में कुछ छात्र नेताओं के प्रर्दशन और आंदोलन के बाद जिले में मैट्रिक से अधिक इंटरमीडीयेट (कक्षा-12) तक की कक्षायें प्रारम्भ हो सकीं। शिवपुरी में इंटरमीडियेट कालिज का शुभारम्भ 03 जून 1952 से हुआ। शिवपुरी में सन 1920-21 से लगातार सामाजिक और धार्मिक कार्यों में संलग्न संस्था वीर तत्व प्रकाश मंडल ने शिक्षा के क्षेत्र में एक कदम आगे बढ़ते हुए व्ही.टी.पी.जैन डिग्री कॉलिज खोला। इस कालिज का उद्घाटन प्रसिद्ध शिक्षा-शास्त्री और तात्कालिक मध्य भारत में शिक्षा संचालक पं.श्री नारायण चतुर्वेदी के द्वारा किया गया। वीर तत्व प्रकाश मंडल जिसे आज हम व्ही.टी.पी. के नाम से जानते है का गठन महात्मा विजयधर्म सूरी के द्वारा सन 1920-21 में किया गया था। महात्मा सूरी की समाधि इसी विद्यालय के सामने,वशिष्ठ कालोनी से लगे हुए मैदान में आज भी स्थित है। दो हाथ बारह आंखें फिल्म की सूटिंग के समय प्रसिद्ध अदाकार अभिभट्टाचार्य शिवपुरी पधारे थे और आपने महात्मा सूरी की समाधि पर जा कर पुष्पांजलि अर्पित की थी।
सन 1960-61 में व्ही.टी.पी. संस्था को विक्रम विश्व विद्यालय उज्जैन के द्वारा डिग्री कालिज खोलन की अनुमति मिल गई। इस कालिज को खुलवाने में तात्कालिक कलेक्टर श्री रामबिहारी लाल की महती भूमिका रही। कुछ समय तक यह अशासकीय डिग्री कालिज की कक्षायें बी.टी.पी.संस्था में ही चलती रहीं। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ.शंकर दयाल शर्मा जब मध्य प्रदेश के शिक्षा मंत्री बने तो उनकी एक नीति के अनुसार प्राइवेट कालिजों के अधिग्रहण को प्रमुखता दी गई। इसी नीति के फलस्वरूप व्ही.टी.पी.डिग्री कालिज का भी अधिग्रहण कर लिया गया। अब इसका नाम शासकीय महा विद्यालय शिवपुरी हो गया। कुछ समय के बाद डिग्री कालिज को व्ही.टी.पी.भवन से स्थानांतरित करके उ.माध्यमिक विद्यालय क्र.-2 के भवन में ले आया गया। इस समय तक यहां प्राध्यापकों की संख्या मात्र 09 थी। 1961 में डॉ.गोपाल व्यास ने इसके पहले प्राचर्य के पद को सुशोभित किया। एक दो वर्ष के बाद ही सन 1963-64 में यह कॉलिज ग्रांड होटल (लाल कालिज) में ले आया गया । यहां पहले से ही फिजीकल कॉलिज चल रहा था। इस मध्य ग्वालियर में सन 1964 में जीवाजी विश्व विद्यालय स्थापित किया गया। जीवाजी विश्व विद्यालय स्थापित हो जाने पर इस कालिज को विक्रम विश्व विद्यालय उज्जैन से हटा कर जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर से जोड़ दिया गया। उल्लेखनीय है कुछ कक्षायें सन 1974-75 तक बी.टी.पी. के कमरों में ही लगती रहीं। सन 1974-75 में नवीन भवन के निर्माण के उपरांत विज्ञान की कक्षायें नवीन भवन में स्थानांतरित की गईं और तब इस नवीन भवन को साइंस कॉलिज के नाम से पुकारा जाने लगा। बाद में इस नवीन भवन में कामर्स एवं विधि संकाय की कक्षाओं का स्थानांतरण किया गया। कला संकाय की कक्षायें फिर भी ग्रांड होटल बनाम लाल कालिज में चलती रहीं। सन 1982 में शा.कन्या महा विद्यालय स्थापित हो जाने के बाद यहां से कला संकाय की कक्षायें भी नवीन भवन में स्थानांतरित कर दी गईं। कन्या महाविद्यालय की स्थापना के बाद अवश्यकता के अनुसार मेरे भवन में नवीन कमरों, प्रयोगशालाओं, खेल के मैदानों, विशाल सभाकक्ष आदि का निर्माण होता रहा। ग्रांड होटल जो अब इंद्रागांधी शासकीय कन्या महा विद्यालय के नाम से जाना जाता है। समय के साथ मेरे भीतर अनेक परिवर्तन किये गए। ग्रांड होटल के डायनिंग हॉल जिसमें कभी रसायन-शास्त्र की प्रयोगशाला हुआ करती थी और उसके बाद का रसोई घर का आज समुचित स्वरूप बदल गया है। यहां एक सुंदर और भव्य सभागार का भी निर्माण हुआ है। कॉलिज के खुले हुए तिवारे में लोहे की जालियां लग गई है। कॉलिज के परिसर के चारों ओर ऊंची दीवारों का परकोटा बना दिया गया है। इस तरह छात्राओं की सुविधाओं के लिए इसमें अनेक नवीन अधोसंरचनाओं का निर्माण और पुरानी संरचनाओं में आवश्यकता अनुसार बदलाव किया गया है। यह बदलाव निश्चित ही प्रशंसनीय है।
जब मेरे इतिहास की बात चल रही है तो मैं इस महा विद्यालय में घटित कुछ प्रमुख घटनायें जो आज इतिहास बन गई हैं, के बारे में भी आपको बताना चाहूंगा।
एक घटना हैं। प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री इस महा विद्यालय स्नेह सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किए गये थे। वे स्थानीय सर्किट हाउस में थे तथा जानबूझ कर आने में देरी लगा रहे थे। उन्हें बार बार टेलीफोन से तथा आदमी भेज कर भी तत्काल आने का अनुरोध किया गया पर जब वे इसके बाद भी नहीं आये तो तात्कालिक प्राचार्य ने मंत्री के स्थान पर महाविद्यालय के सबसे वरिष्ठ चपरासी से दीप प्रज्ज्वलित करा कर स्नेह सम्मेलन का आयोजन का शुभारम्भ करा दिया। बाद में यहां से मंत्री जी आकर खाली हाथ लोट गए।
इस महा विद्यालय में जहां प्रो.रामकुमार चतुर्वेदी चंचल जैसे अखिल भारतीय मंचों के कवि, डॉ.परशुराम शुक्ल विरही जैसे प्रख्यात कवि, समालोचक, अनुवादक और उपन्यासकार दिए तो प्रो.विद्यानंदर शर्मा राजीव जैसे प्राध्यापक दिए तो वहीं प्रो.चन्द्रपाल सिंह सिकरवार जैसे आदर्शवादी संत के समतुल्य प्राध्यापक भी दिये जिनकी दिनचर्या के सटीक समय के विश्वसनियता इतनी थी कि लोग अपनी घड़िया उन्हें देख कर मिला लिया करते थे। बहुत कम लोग जानते हैं-इस महाविद्यालय के प्रथम प्राचार्य गोपाल व्यास भी एक अच्छे रचनाकार और साहित्यकार थे। यहां इस महा विद्यालय में डॉ.सीताराम दांतरे जैसे प्राध्यापक थे जिन्होंने इस नगर में समाज सेवा की आधार शिला रखी थी। इसके साथ हमारे प्रो.के.के.दुबे जी जब भी टेलीफोन पर बात करते थे तो अपने नाम के साथ जी लगाना नहीं बोलते थे-कौन? मैं दुबेजी बोल रहा हूं और प्रोफेसर आर.डी.श्रीवास्तव विज्ञान के नहीं ललित-कलाओं के दीवाने थे। स्नेह सम्मेलन की छोटी से छोटी तैयारी और व्यवस्था कराते थे। तब छात्र कलाकारों को अपने आयोजनों की तैयारी और अभ्यास के लिए मात्र 35 पैसे की पर्ची मिलती थी। इसमें एक समोसा, एक चाय और एक लड्डू आ जाता था। यह समय सन 1973 और उसके बाद का समय था। प्रोफेसर नरेश तिवारी ने रिकॉर्ड पर अनेक सामूहिक नृत्यों की तैयारी कराई थी। जिसमें इस महा विद्यालय में छात्र-छात्रओं ने कॉलिज के रंगमंच पर एक साथ नृत्य प्रस्तुतियां दी थी।
इस महाविद्यालय में कुछ अप्रिय भी घटित हुआ जिसमें एक चलते समारोह में हथ गोले फैके जाने की घटना भी शामिल है। सन 1970 या उसके पूर्व जब छात्र संघ के नवनिर्वाचित पदाधिकारी शपथ ले रहे थे तब अचानक मंच पर एक के बाद एक तीन हथ-गोले आकर गिरे। किसी को कोई नुकासन तो नहीं हुआ पर पूरे नगर में इन हथगोलों की आवाज सुनाई दी। इसी प्रकार सन 1973-74 में ही छात्रसंघ के निर्वाचन के समय गोपाल कृष्ण दंडोतिया जो अध्यक्ष पद के प्रत्याशी थे और उनके सर्मथक दिनेश गोतम कर्बला पुल के निकट बोरी में बंद पाये गये। कहा गया छात्रसंघ के चुनाव के प्रचार के समय किसी ने उनका अपहरण कर लिया था।
सम्भवतः इस महा विद्यालय की प्रथम महिला शिक्षिका प्रेमा सेठी थीं। सुना है जब वे पहली बार अपनी कक्षा में पढ़ाने के लिए आईं थीं तो कुछ विद्यार्थियों ने उनके ठीक ऊपर लगे हुए पंखे की पंखुड़ियों के ऊपर ढेर सारी गुलाब की पंखुड़ियां रख दीं थीं। जब उन्होंने पंखे का खटका चालू किया तो वे सारी गुलाब की पंखुड़िया उन पर बिखर गई। इस तरह हुआ था हमारे महा विद्यालय की प्रथम महिला प्राध्यापिका का स्वागत। श्रीमती सेठी मेरे नगर शिवपुरी की पहली महिला स्कूटर चालक भी थी।
हमारे यहां एक प्राध्यापक और थे जो अपने सीधेपन ही नहीं अपनी कंजूसी के लिए भी बदनाम थे। ये बेचारे इतने असहाय थे कि वे ग्वालियर तक भी ट्रक में बैठ कर जाते थे, फिर वह भला कोयले का ट्रक ही क्यों न हो-मात्र किराये के कुछ पैसे बचाने के लिए। उनके पास एक पुराना सूट था जिसे वे हर दिन पहन कर कॉलिज आते थे। वे किसी भी विद्यार्थी के घर अचानक पहुंच जाते थे-लगभग खाने के समय ताकी उन्हें मुफ्त का भोजन मिल सके और वे घरों में काम करने वाली बाईयों की बस्ती में रहा करते थे-मकान किराया बचाने के लिए। सुना है-उनकी कक्षा में उनकी कुर्सी से कुछ शरारती छात्रों ने गधा बांध दिया था। घटनायें बहुत है और भी हो सकती है पर अभी के लिए बस इतना ही। जय जय राम की।

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